Nalanda University : प्रसिद्ध लेखक और इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने मंगलवार, 8 अप्रैल को नालंदा विश्वविद्यालय में उत्खनन कार्य की कमी पर चिंता व्यक्त की… और जानें

Nalanda University : मंगलवार, 8 अप्रैल को प्रसिद्ध लेखक और इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने नालंदा विश्वविद्यालय में उत्खनन कार्य की कमी पर चिंता व्यक्त की और कहा कि बिहार में नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन अवशेषों में से केवल 10 प्रतिशत की ही खुदाई की गई है, और शेष 90 प्रतिशत की खोज अभी बाकी है। उन्होंने नालंदा में एक भव्य संग्रहालय बनाने की आवश्यकता पर भी बल दिया, जो भारतीय सभ्यता का एक विशाल और महत्वपूर्ण स्मारक बन जाएगा। डेलरिम्पल की टिप्पणी इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ‘नालंदा: इसने दुनिया को कैसे बदल दिया’ पर एक चर्चा के दौरान आई।
उन्होंने कहा, “यह चौंकाने वाली बात है कि 21वीं सदी में भी नालंदा स्थल के पुरातात्विक अवशेषों की खुदाई में पर्याप्त धन का निवेश नहीं किया गया है।” उनका मानना था कि नालंदा के कई हिस्सों में अभी भी खुदाई की जरूरत है और सरकार को इसके महत्व को समझते हुए और अधिक निवेश करना चाहिए।
नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारतीय शिक्षा केंद्र
नालंदा विश्वविद्यालय या नालंदा महाविहार के खंडहर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल हैं, जिन्हें 2016 में यह प्रतिष्ठित दर्जा प्राप्त हुआ। यह स्थल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 13वीं शताब्दी तक एक प्रमुख शैक्षिक केंद्र था, जिसने भारतीय और विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नालंदा में स्तूप, मंदिर, विहार (आवासीय और शैक्षिक भवन) और कई महत्वपूर्ण कलाकृतियाँ हैं जो प्राचीन भारतीय सभ्यता की महानता को दर्शाती हैं।
वहीं, डेलरिम्पल ने अपनी नई किताब “द गोल्डन रोड: हाउ एनशिएंट इंडिया ट्रांसफॉर्म्ड द वर्ल्ड” में इस प्राचीन भारतीय सभ्यता के योगदान के बारे में विस्तार से बताया है। उन्होंने कहा, “नालंदा विश्वविद्यालय का डिजाइन आज भी आधुनिक ऑक्सब्रिज कॉलेजों में देखा जा सकता है, जो इस बात का प्रमाण है कि उस समय यहां शिक्षा प्रणाली कितनी उन्नत थी।”
सरकार की ओर से फंड की कमी पर चिंता जताई
डेलरिम्पल ने यह भी कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय के शैक्षणिक परिसर की खुदाई और संरक्षण के लिए सरकार की ओर से पर्याप्त फंड की जरूरत है। उन्होंने कहा, “यह भारत की सॉफ्ट पावर का सबसे बड़ा उदाहरण था और यह काफी आश्चर्यजनक है कि भारतीय सभ्यता के प्रतीक इस स्थल की खुदाई के लिए पर्याप्त फंड नहीं दिया जा रहा है।” उनका मानना है कि नालंदा में खुदाई का काम बिना किसी रुकावट के जारी रहना चाहिए ताकि दुनिया को प्राचीन भारतीय ज्ञान के इस अमूल्य खजाने का पूरा लाभ मिल सके।
नालंदा में संग्रहालय का निर्माण
वर्तमान में बिहार की राजधानी पटना से लगभग 98 किलोमीटर दूर स्थित नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों में एक मामूली संग्रहालय बना हुआ है। डेलरिम्पल ने सुझाव दिया कि इस स्थल पर एक बड़ा और भव्य संग्रहालय बनाया जाना चाहिए, जो न केवल भारतीय बल्कि वैश्विक सभ्यता के विकास को भी दर्शाएगा। उन्होंने कहा कि नालंदा का इतिहास इतना समृद्ध और महत्वपूर्ण है कि इसे एक विशाल और भव्य स्मारक के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
नालंदा विश्वविद्यालय का वैश्विक महत्व
नालंदा विश्वविद्यालय विश्व भर में प्रसिद्ध है। इसे भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे पुराना और सबसे प्रमुख विश्वविद्यालय माना जाता है, जिसने 800 वर्षों तक ज्ञान के प्रसार में योगदान दिया। इसकी शैक्षणिक संरचना और शिक्षण पद्धतियाँ आज भी पूरी दुनिया को प्रभावित करती हैं। इसके समृद्ध इतिहास को समझने और इसके महत्व को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाने के लिए उत्खनन कार्य और संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है।
नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों का उत्खनन और संरक्षण भारतीय इतिहास और सभ्यता के अध्ययन के लिए आवश्यक है। डेलरिम्पल की चिंता जायज है और इसके लिए पर्याप्त धन और संसाधन आवंटित किए जाने चाहिए ताकि हम इस प्राचीन विरासत को संरक्षित कर सकें और नालंदा की महानता को पूरी दुनिया को परिचित करा सकें।
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Author: News Patna Ki
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